क्या होती है कांवड़ यात्रा और क्या है इसका पौराणिक महत्व क्या होता है – एक रिपोर्ट

22 जुलाई से सावन का महीना शुरू होने जा रहा है। सावन का महीना भगवान शिव और उनकी उपासना की लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। माना जाता है कि सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा  करने से भगवान शिव अत्यंत  प्रसन्न होते हैं। भक्त अपने आराध्य भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए हर साल लाखों की संख्या में  कावड़ यात्रा पर निकालते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान शिव अपने भक्तों से प्रसन्न होते हैं और उनकी सारी मनोकामना पूरी करते हैं। इस कांवड़ यात्रा का सावन के महीने में अपना महत्व है। इस वर्ष कावड़ यात्रा 22 जुलाई से 2 अगस्त तक होगी। कहा जाता है कि सावन का महीना भगवान् शिव को बहुत प्रिय है।

आइये जानते हैं इस महत्वपूर्ण  कावड़ यात्रा का पौराणिक इतिहास –

कांवड़ यात्रा को शुरू करने से पहले श्रद्धालु बांस की लकड़ी पर दोनों ओर टिकी हुई टोकरियों के साथ किसी पवित्र स्थान पर पहुंचते हैं और इन्हीं टोकरियों में गंगाजल लेकर लौटते हैं। इस कावड़ को लगातार यात्रा के दौरान अपने कंधे पर रखकर यात्रा करते हैं, इस यात्रा को कावड़ यात्रा और यात्रियों को कावड़िया कहा जाता है। पहले के समय लोग नंगे पैर या पैदल ही कावड़ यात्रा करते थे। हालांकि अब लोग बाइक, ट्रक और दूसरे साधनों का भी इस्तेमाल करने लगे हैं।

 

कांवड़ यात्रा का इतिहास

पौराणिक मान्यता के अनुसार माना जाता है की भगवान परशुराम भगवान शिव के परम भक्त थे। ऐसा कहा जाता है कि श्रावण मास में वे कावड़ लेकर बागपत जिले के पास ‘पुरा महादेव’ गए थे। उन्होंने गढ़मुक्तेश्वर से गंगा का जल लेकर भोलेनाथ का जलाभिषेक किया था। तभी से यह परंपरा प्रारम्भ हुई और भक्तों ने भी इस परम्परा को निभाते हुए श्रावण मास में कावड़ यात्रा निकालने लगे।

कावड़ यात्रा के नियम

कावड़ यात्रा के दौरान कांवड़ियों को एक साधु की तरह रहना होता है। गंगाजल भरने से लेकर उसे शिवलिंग पर अभिषेक करने तक का पूरा सफर भक्त पैदल, नंगे पांव करते हैं। यात्रा के दौरान किसी भी तरह के नशे या मांसाहार की मनाही होती है। इसके अलावा किसी को अपशब्द भी नहीं बोला जाता। स्नान किए बगैर कोई भी भक्त कावड़ को छूता नहीं है। आम तौर पर यात्रा के दौरान कंघा, तेल, साबुन आदि का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। इसके अलावा भी चारपाई पर ना बैठना आदि जैसे नियमों का भी पालन करना होता है।

इन स्थानों पर कावड़ यात्रा का है महत्व

सावन की चतुर्दशी के दिन किसी भी शिवालय पर जल चढ़ाना फलदायक माना जाता है। अधिकतर कावड़िए मेरठ के औघड़नाथ, पुरा महादेव, वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर, झारखंड के वैद्यनाथ मंदिर और बंगाल के तारकनाथ मंदिर में पहुंचना ज्यादा पसंद करते हैं।

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