राम जन्मभूमि के संघर्ष से रामजन्म भूमि में रामलला प्राण प्रतिष्ठा तक की कथा

श्री राम जहां ईश्वरीय अवतार माने जाते हैं वहीं वे सर्वोत्कृष्ट राजा,आदर्श व मर्यादा स्थापित करने वाले पुरुष भी माने जाते हैं। वे सनातन की आत्मा है। वशिष्ठ संहिता में कहा गया है कि राम का नाम, रूप, लीला व धाम सत् चित् और आनन्द देने वाले हैं-

रामस्य नाम रूपं च लीला धाम परात्परम्।
एतच्चतुष्टयं नित्यं सच्चिदान्दविग्रहम्।
इस संहिता में अयोध्या को वैकुण्ठ व गोलोक से भी प्रतिष्ठित माना गया है
अयोध्या नगरी नित्या सच्चिदानन्द स्वरूपिणी
यस्यांशेन वैकुण्ठो गोलोकादिप्रतिष्ठित:।।

09 नवम्बर सन् 2019 का दिन भारत के ही नहीं विश्व के राम भक्तों के लिए अविस्मरणीय दिन बन गया जब भारत के सबसे बड़े न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की पीठ ने अपने ऐतिहासिक निर्णय में अयोध्या के राजा श्री राम की जन्मभूमि कहलाये जाने वाली भूमि को श्री राम की भूमि मान कर उस पर से दूसरे पक्ष का अधिकार समाप्त करने का आदेश पारित कर दिया था। इससे यह भूमि 491 वर्ष बाद अयोध्या के राजा राम को वापस मिल पायी है। जिसका स्वागत देश की समस्त जनता ने किया। न्यायालय ने दूसरे पक्ष को भी निराश नहीं किया उन्हें भी पीठ ने सरकार को अयोध्या में अन्यत्र भूमि उपलब्ध करने का आदेश दिया। सर्वोच्च न्यायालय  के इस आदेश के पारित होने का सम्मान देश के सभी लोगों ने किया। इस दिन देश के सबसे पुराने वादों में से एक वाद  का निपटारा होने से देश की जनता ने राहत की सांस ली।
ऐतिहासिक तथ्यों व जनश्रुतियों के अनुसार सन् 1526 ई० में समरकंद के मुसलमान शासक बाबर ने भारत के राजाओं को हराकर दिल्ली पर अपना अधिकार कर लिया। बाबर के दिल्ली पर अधिकार होने के बाद देश के अन्य भागों पर भी अपना अधिकार जमाने के लिए अपने सेनापतियों में से एक मीरबांकी को पूर्व की ओर भेजा। जो तत्कालीन छोटे-छोटे राजाओं को जीतता हुआ अयोध्या पहुंचा।जहां उसने भगवान राम के मंदिर को तोड़ कर सन् 1528 ई० में उसके ऊपर एक मस्जिद का निर्माण कराया जो बाद में बाबरी मस्जिद कहलाई गयी। स्वाभाविक है कि जब मन्दिर पर आक्रांताओं का अधिकार हुआ होगा तो उन्होंने मंदिर की मूर्तियों सहित मंदिर की सम्पूर्ण पहचान मिटाने का कार्य किया होगा। लगभग 239 साल तक देश में मुगल शासन होने से इसके ऐतिहासिक तथ्य शासकों की इच्छानुसार फेरबदल कर दिये जाने की संभावनाओं से कोई इन्कार नहीं किया जा सकता है। उसके बाद “फूट डालो राज करो” की नीति के अंग्रेजों ने 90 साल तक राज किया।आजादी के बाद भी मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति वाली पार्टी का शासन देश में रहा।जिससे राम जन्मभूमि की पैरवी न्यायालयों में सही प्रकार से नहीं हो पाने से यह मामला अनिर्णित ही रहा।

जब सन् 1857 में देश से मुस्लिम शासन का अन्त हुआ और देश में अंग्रेजी सरकार का राज स्थापित हो गया तब हिन्दुओं ने इस मस्जिद के रामजन्म भूमि पर बने होने का आरोप लगाकर इस भूमि को  सरकार से हिंदुओं को वापस देने की मांग की। सन् 1858 ई० में दूसरे पक्ष ने हिन्दुओं पर मंदिर परिसर में हवन पूजा करने का आरोप लगाते हुए एफ.आई.आर.दर्ज की गयी। जिस पर जांच करते हुए पुलिस ने अपनी जांच रिपोर्ट में लिखा कि मस्जिद परिसर में एक चबूतरा है उसी पर हिन्दू वर्ग अपनी पूजा आदि करते हैं। शासन के निर्देश पर मस्जिद व चबूतरे के बीच सुरक्षा बाढ बना कर मस्जिद के अन्दर नमाज पढने व चबूतरे पर पूजा करने की स्वीकृति दे दी गयी।

सन् 1885 में निर्मोही अखाड़ा ने राम जन्मभूमि को वापस पाने के लिए कानूनी लड़ाई प्रारम्भ करते हुए अखाड़े के महन्त रघुवरदास ने फैजाबाद की अदालत में दीवानी का मुकदमा करते हुए उक्त स्थान पर अपना स्वामित्व जताया। इस प्रकार यह मामला न्यायालय में पहली बार सूचीबद्ध हुआ। न्यायालय ने भी चबूतरे पर हिन्दुओं के पूजा करने के अधिकार को माना परन्तु उक्त स्थान पर मंदिर बनाने और छत डालने की अनुमति नहीं दी।

23 दिसंबर1949 को रामजन्मभूमि पर खड़ी बाबरी मस्जिद के अन्दर भगवान राम की मूर्तियां पाये जाने पर जहां हिन्दुओं ने यह दावा किया कि मस्जिद में भगवान राम मूर्ति के रूप में प्रकट हुए हैं वहीं मुस्लिम पक्ष ने आरोप लगाया कि किसी ने रात में चुपके से मूर्तियां रख दी हैं। तत्कालीन सरकार ने प्रशासन को मूर्तियां हटाने का निर्देश दिया परन्तु तत्कालीन जिलाधिकारी ने मूर्तियां हटाने पर हिन्दू भावनाओं के भड़कने व दंगे होने की संभावना की आशंका व्यक्त की। शासन‌ ने ढांचे को विवादित मानते हुए इस पर ताला लगा दिया।

16 जनवरी 1950 में गोपालसिंह विशारद जो हिन्दू महासभा के सदस्य थे, ने सिविल जज फैजाबाद की अदालत में दूसरे पक्ष को पूजा अर्चना में बाधा डालने से रोकने का वाद प्रस्तुत किया। 05 दिसम्बर 1950 को महंत रामचन्द्र परमहंस ने इसी प्रकार की मांग का वाद दायर किया। दोनों मुकदमों पर अदालत ने दूसरे पक्ष को पूजा अर्चना में बाधा डालने से रोकने का आदेश पारित कर दिया।निर्मोही अखाड़े के छ:लोगों ने 17 दिसम्बर 1959 को रामानन्द सम्प्रदाय की ओर से अदालत में वाद दायर कर इस स्थान पर अपना हक जताते हुए रिसीवर को हटाकर स्वयं पूजा अर्चना करने का अधिकार मांगा।18 दिसम्बर 1961 को केन्द्रीय सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अदालत में मुकदमा दायर कर इस पर मुसलमानों का हक जताते हुए यहां से मूर्ति हटाने की मांग की। विश्व हिन्दू परिषद ने 1982 को राम कृष्ण शिव के स्थलों पर मस्जिद निर्माण को हिन्दू आस्था पर जानबूझ कर कुठाराघात बताते हुए मुक्ति अभियान चलाने की घोषणा की। 08 अप्रैल 1984 को विहिप ने राम जन्मभूमि पर से ताला खुलवाने हेतु दिल्ली में बैठक कर निर्णय लिया कि इसके लिए आन्दोलन किया जाय। 09 नवम्बर 1989 को अयोध्या में राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण हेतु शिलान्यास की घोषणा की। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने शिलान्यास की स्वीकृत दे दी।

 

रामजन्मभूमि पर राम मंदिर बनाने के इस आन्दोलन को भाजपा द्वारा आयोजित रामरथ यात्रा से धार मिली  जिसकी अगुवाई तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने की। यह यात्रा सोमनाथ से अयोध्या के लिए निकली। यह यात्रा गुजरात,‌ महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश,मध्यप्रदेश,राजस्थान,उ.प्र.,बिहार पहुंची। बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने रामरथ रोक कर आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया। निर्धारित दिन उत्तर प्रदेश सरकार के रोकने के बाद भी हजारों हिन्दू अयोध्या पहुंचने में सफल रहे। अयोध्या में हुए संघर्ष में 20 लोग मारे गये। इस यात्रा से हिन्दुओं के दिल में राममंदिर बनाने इच्छा और बलवती हो गयी ।

06 दिसम्बर 1992 को हजारों हिन्दुओं ने अयोध्या पहुंच कर विवादित ढांचा ढहा दिया और वहां पर अस्थाई मंदिर बनाकर पूजा अर्चना प्रारंभ कर दी। केन्द्र की कांग्रेस सरकार ने उत्तरप्रदेश की कल्याणसिंह सरकार को बर्खास्त कर दिया। भाजपा नेताओं और हजारों लोगों पर मुकदमें दर्ज कर दिए गये। 07 जनवरी 1993 को केन्द्र सरकार ने अयोध्या राम मंदिर की 67 एकड़ भूमि का अधिग्रहण कर दिया।

 

27 फरवरी सन् 2002 में गुजरात में हिन्दू कार्यकर्ताओं को ले जा रही ट्रेन में आग लगाने से 59 कार्यकर्ता जिन्दा जल कर मौत के मुंह में समा गये। जिससे भड़की हिंसा में लगभग 1200 से अधिक लोग मारे गये। 2010 में इलाहाबाद (प्रयागराज) हाईकोर्ट ने विवादित स्थल को रामलला,सुन्नी वक्फ बोर्ड व निर्मोही अखाड़े में बराबर-बराबर बांटने का निर्णय दिया जिस पर सन् 2010 में सुप्रीमकोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। सन् 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने आपसी सुलह से मामला निस्तारण का आदेश दिया। इसी वर्ष कोर्ट ने बीजेपी नेताओं पर अपराधिक साजिश रचने के अभियोग पुनर्निर्धारित किये। 08 मार्च 2019 को न्यायालय ने मध्यस्तता के लिए मामला भेजा तथा पैनल को 02 माह का समय दिया। 01 अगस्त 2019 को मध्यस्तता पैनल ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। 02 अगस्त 2019 को कोर्ट ने पैनल को असफल बताया। 06 अगस्त 2019 से अदालत ने मामला रोज सुनवाई के लिए प्रस्तुत करने का आदेश दिया और रोज सुनवाई की। 16 अक्तूबर 2019 को राम जन्मभूमि मामले की सुनवाई पूरी होने पर सुप्रीमकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया । 09 नवम्बर 2019 को देश की सबसे बड़ी अदालत के 05 जजों की पीठ ने जिनकी अगुआई देश के प्रधान न्यायाधीश कर रहे थे अपना फैसला सुनाते हुए राम जन्मभूमि पर हिन्दुओं का अधिकार मानते हुए उसे हिन्दुओं को देने का आदेश दिया साथ ही मस्जिद बनाने के लिए 05 एकड़ भूमि उपलब्ध कराने के आदेश दिये। इस ऐतिहासिक फैसले से इस सैकड़ों वर्ष पुराने विवाद का अन्त हुआ।

इस विवाद के अन्त के बाद देश के प्रधानमंत्री  नरेन्द्र मोदी  के 05 अगस्त 2020 को मंदिर निर्माण हेतु भूमि पूजन करने के पश्चात वहां पर भव्य राममंदिर  बनकर तैयार हो गया है। जिसके गर्भगृह में दिनांक 18 जनवरी 2024 को 05 वर्षीय रामलला का विग्रह प्रतिष्ठित हो गया है। 22 जनवरी 2024 को देश की जनता, संतों व देश के प्रधानमंत्री की उपस्थिति में प्राण प्रतिष्ठा हो जाने पर लगभग 500 वर्षों का कलंक धुलकर हिन्दुओं का गौरव मस्तक उन्नत होगा। इसके लिए वे सभी लोग धन्य व श्रद्धेय हैं जिन्होंने रामकाज के लिए अपने प्राणोत्सर्ग किए अपितु वे लोग भी हैं जिन्होंने इस कार्य में किंचित भी सहयोग दिया है। हम हिन्दू जन्म-जन्मान्तर तक उनके ऋणी रहेंगे। प्राण प्रतिष्ठा पर सभी पाठकों हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं।

नागेन्द्र प्रसाद रतूड़ी
     (स्वतंत्र पत्रकार)

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