देवप्रयाग। उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत गढ़वाल लोकसभा क्षेत्र में सक्रिय है , 22 नवंबर से त्रिवेंद्र रावत सीतामाता परिपथ सर्किट की पदयात्रा कर रहे है। इस अवसर पर त्रिवेंद्र ने मीडिया से बात करते हुए सीतामाता परिपथ के सम्बन्ध में बताया कि उन्होंने देवभूमि उत्तराखंड के गढ़वाल में पवित्र देवप्रयाग संगम के निकट सीताजी से संबंधित पवित्र स्थलों को जोड़ने की कल्पना की है । यहीं माता का भ्रमण हुआ और मान्यता है कि अंत में यहीं फलस्वाड़ी में वे भूमि में समाई थीं।
उन्होंने कहा कि देवप्रयाग में अलकनंदा और भागीरथी 2 पवित्र नदियों का संगम है और यहीं से दोनों धाराएं गंगा नदी के नाम से आगे बढ़ती हैं। यहीं संगम तट पर रघुनाथ जी का प्राचीन मंदिर है जो गिद्धांचल पर्वत पर स्थित है। देवप्रयाग बस स्थानक के ऊपर की ओर जो पर्वत है उसे दशरथांचल पर्वत कहा गया है। इसी से शांता नदी निकलती है, जिसका नाम श्रीराम की बहन शांता के नाम पर पड़ा है। शांता नदी की धारा भी संगम के निकट ही अन्य धाराओं में मिलती हैं। इस प्रकार ये स्थान त्रिवेणी भी है। मान्यता है कि वन गमन के समय माता सीता यहीं से होती हुई गई थीं।
देवप्रयाग से आगे पुराने यात्रा मार्ग पर विदाकोटी गांव है। यहीं पर लक्ष्मण जी ने सीतामाता को विदा किया था। यहां प्राचीन मंदिर भी स्थित है। आगे मुछ्याली गांव से होते हुए देवल गांव में लक्ष्मण जी का मंदिर है। यहीं से थोड़ा आगे कोटसाड़ा गांव में वाल्मीकि आश्रम और अंत में सीतामाता का समाधि स्थल है, जहां मां का मंदिर भी है। यहीं सैकड़ों वर्षों से फलस्वाड़ी का मेला लगता आया है। इस पट्टी का नाम सितोनस्यूं है। यहां की कुलदेवी सीतामाता हैं।
विदाकोटी से आगे सीताकोटी स्थान पर सीतामाता ने अलकनंदा तट पर नागमंदिर बनाया था, जो कालांतर में बाढ़ में बह गया था।
कोटसाडा गांव में बाल्मीकि आश्रम बताते हैं, वहीं बाल्मीकि जी का प्राचीन मंदिर है। सीतामाता परिपथ (सर्किट ) समिति, कोट द्वारा ये यात्रा प्रथम बार आरंभ की जा रही है। देवप्रयाग से विदाकोटी मुछयाली, लक्ष्मण मंदिर देवल , फिर कोटसाड़ा बाल्मीकि मंदिर होते हुए सीतामाता भू समाधि स्थल फलस्वाड़ी की यात्रा का उद्देश्य इन सभी पवित्र स्थलों को जोड़ना है जिससे नई पीढ़ी को इनके महात्म्य के बारे में बताया जा सके।
अयोध्या में प्रभु राम के भव्य मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा , उद्घाटन होने जा रहा है। भरत भूमि के सभी स्थल जो श्रीराम और मां सीता से जुड़े हैं वे हमारे लिए पवित्र हैं। उनका भी समुचित विकास हो, जिससे नई पीढ़ी को अपने गौरवशाली इतिहास से जोड़ा जा सके।
इस यात्रा से विश्वास है कि देश दुनिया के सनातनी और हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले श्रद्धालु इन पवित्र स्थलों की यात्रा करेंगे । श्रीराम मंदिर एवम अन्य धामों के समान फलस्वाड़ी सीतामाता परिक्षेत्र भी भव्य दिव्य रूप में विकसित होगा।