यूपीसीएल व पेयजल निगम में चल रही धींगामुश्ती से सरकार व उत्तराखंड की कार्य संस्कृति पर पड़ेगा बुरा असर
उत्तराखंड पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड के रुड़की कार्यालय में दो अधीक्षण अभियंताओं में पोस्टिंग को लेकर मारपीट व मुकद्दमे बाजी विगत दिनों से चर्चा का विषय बना हुआ है। वैंसे आमजनता तो यही समझेगी की दो अधिकारियों की आपसी लड़ाई है लेकिन ये मात्र दो अधिकारियों की आपसी लड़ाई नही , बल्कि क्षेत्र में रहने के लिए वर्चस्व की जंग है, कारण रुड़की क्षेत्र में कई औद्योगिक इकाइयां है और उन इकाइयों में ऊर्जा निगम द्वारा ही विद्युत की सप्लाई दी जाती है।
अधिकारियों की आपसी जंग राज्य के सार्वजनिक निगम के बाहर होती तो कोई आपत्ति नही थी क्यों ये लड़ाई इनकी व्यक्तिगत लडाई होती, जिसमे हमे या आम जनता को कुछ लेना देना नही। लेकिन राज्य की सेवा में रहते हुए अधीक्षण अभियंता जैंसे पदों पर बैठे ये तथाकथित इंजीनियर ऐंसे लड़ रहे है जैसे माफियाओं की जंग हो।
हालांकि यूपीसीएल हमेशा से ही कुछ न कुछ विवादों में रहता है लेकिन वर्तमान की ये लड़ाई दर्शाती है कि यूपीसीएल के प्रबंध निदेशक पद पर बैठे हुए अधिकारी की ही कमी है कि निगम में इस तरह की अनुशासनहीनता हो रही है।
इस तरह की अनुशासनहीनता भले ही आम जन के समझ से बाहर हो लेकिन कंही न कहीं इन हरकतों की वजह से यूपीसीएल, उत्तराखंड सरकार , बिजली उपभोक्ता व उत्तराखंड की संस्कृति को नुकसान ही है।
सूत्रों की माने तो इन दो अभियंताओं की आपसी लड़ाई मात्र मलाईदार जगह पर नियुक्ति हेतु नही थी अपितु किसी उद्योगपति के औद्योगिक इकाई के बिलों से सम्बंधित भी हो सकती है।
उत्तराखंड में इसी तरह एक घटना विगत कुछ समय पूर्व उत्तरखण्ड पेयजल निगम में भी हुई थी लेकिन उनको भी सिर्फ स्थान्तरण करके इतिश्री कर दी गयी है। समाचार पत्रों से संज्ञान में आया की पौड़ी गढ़वाल मुख्यालय में भी पेयजल निगम के अधिकारी और ठेकेदार के मध्य विवाद हुवा था उसका क्या फैसला हुवा वह भी शायद ठन्डे बस्ते में चला गया।
जहाँ उत्तराखंड के मुख्यमंत्री उत्तराखंड में हुयी भर्ती अनियमितताओं पर ताबड़तोड़ कार्यवाही कर रहे हैं वंही पेयजल निगम में वर्ष 2005 व 2007 में सहायक अभियंता भर्ती फर्जीवाड़ा पर शासन के द्वारा दिए गए जांच आदेश पर सालों से पेयजल निगम प्रबंधन ने कोई कार्यवाही नहीं की , जबकि पेयजल विभाग (शासन ) द्वारा स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि आठ अभियंताओं की नियुक्ति अवैध है फिर भी प्रबंधन ने लीपापोती करके के जांच दबा दी या गोलमोल कर दी है.
गौरतलब है की नियम विरुद्ध नियुक्ति मामले में उत्तराखंड के विधान सभा अध्यक्ष श्रीमती ऋतू खंडूरी जी ने वर्ष 2016 से लेकर आज तक विधानसभा की नियुक्तियां निरस्त कर दी हैं, जबकि इनमे अधिकतर उत्तराखंड के मूल निवासी थे ऐंसे में पेयजल प्रबंधन को फर्जी तरीके नियुक्ति पाये इन लोगों को बर्खास्त करने में क्यों समस्या आ रही है, ये भी एक बड़ा सवाल पेयजल निगम के प्रबंध निदेशक की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लगाता है।
वर्तमान में जब उत्तराखंड राज्यं भर्ती घोटालों के लिए देश भर में चर्चित है , ऐंसे में उत्तराखंड पावर कॉर्पोरेशन व उत्तराखंड व पेयजल निगम में अभियंताओं की फर्जी नियुक्ति व आपसी रंजिश की जांच सरकार को विजिलेंस या किसी अन्य एजेंसी से करवानी चाहिए , जिससे ये पता लगा सके कि कहीं सरकार को बदनाम करवाने के लिए या किसी बड़े औधोगिक समूह को फायदा पंहुचने के लिए ये अधिकारी ऐंसे निरंकुश होकर आपसे में धींगामुश्ती तो नही कर रहे हैं।
अधिकारियों और कर्मचारियों में इस तरह की अनुशासन हीनता के लिए इनके प्रबंध निदेशकों की कार्यशैली पर भी सरकार को पुनः विचार करने की आवश्यकता है। जिससे राज्य की संस्कृति व राज्य के निगमों को बचाया जा सके.